वफ़ा के पैमान सब भुला कर जफ़ाएँ करते वफ़ा के क़ातिल रसूल-ए-हक़ के जो उम्मती हैं वही हैं आल-ए-एबा के क़ातिल ये उस की अपनी ही मस्लहत है वो जिस्म रखता नहीं है वर्ना ये मंसबों के ग़सब के आदी ज़रूर होते ख़ुदा के क़ातिल न ही अमानत न ही दियानत न ही सदाक़त न ही शराफ़त नबी के मिम्बर पर आ गए हैं नबी की हर इक अदा के क़ातिल इमाम जिन का यज़ीद होगा वो कैसे जानें हुसैन क्या है बने भी हैं क़ारी ला-इलाह के ये ला-इलाह की बक़ा के क़ातिल ये मंसबों के ग़सब के आदी ज़रूर होते ख़ुदा के क़ातिल