ख़ुदा-ए-बर्तर तिरी ज़मीं पर ज़मीं की ख़ातिर ये जंग क्यूँ है हर एक फ़त्ह-ओ-ज़फ़र के दामन पे ख़ून-ए-इंसान का रंग क्यूँ है ज़मीं भी तेरी है हम भी तेरे ये मिलकियत का सवाल क्या है ये क़त्ल-ओ-ख़ूँ का रिवाज क्यूँ है ये रस्म-ए-जंग-ओ-जिदाल क्या है जिन्हें तलब है जहान भर की उन्हीं का दिल इतना तंग क्यूँ है ख़ुदा-ए-बर्तर तेरी ज़मीं पर ज़मीं की ख़ातिर ये जंग क्यूँ है ग़रीब माओं शरीफ़ बहनों को अम्न-ओ-इज़्ज़त की ज़िंदगी दे जिन्हें अता की है तू ने ताक़त उन्हें हिदायत की रौशनी दे सुरों में किब्र-ओ-ग़ुरूर क्यूँ है दिलों के शीशे ये रंग क्यूँ है ख़ुदा-ए-बर्तर तिरी ज़मीं पर ज़मीं की ख़ातिर ये जंग क्यूँ है