ज़िंदगी नाच कि हर लम्हा है जन्नत-ब-कनार देख ये लब हैं ये आँखें ये गुलाबी रुख़्सार फिर न आएगी पलट कर तिरी दुनिया में बहार आज की रात ग़नीमत है चराग़ाँ कर लें एक अंगड़ाई जो ली खुल गईं काली ज़ुल्फ़ें फिर मुझे खींच रही हैं ये घनेरी पलकें देख हैजान से लर्ज़ां हैं ये आरिज़ की रगें आज उस जिन्स-ए-गिराँ-बार को अर्ज़ां कर लें आज की रात ग़नीमत है चराग़ाँ कर लें देख वो होंट हिले हाथ उठे साज़ बजे देख पाज़ेब की हर लय पे सितारे चौंके आसमानों पे फ़रिश्तों के वुज़ू टूट गए आज मा'सूम ख़ुदाओं को भी मेहमाँ कर लें आज की रात ग़नीमत है चराग़ाँ कर लें रात कुछ भीग चली और जमाही आई झिलमिलाती हुई शम्ओं' की ज़िया काँप गई रख दे ये आतिश-ए-सय्याल कि फिर आग लगी आख़िरी बार हर इक दर्द का दरमाँ कर लें आज की रात ग़नीमत है चराग़ाँ कर लें क्या ग़रज़ वक़्त के माथे पे शिकन है कि नहीं मेरी महबूब कलाई में रसन है कि नहीं तेरा आँचल ही शहीदों का कफ़न है कि नहीं हर हक़ीक़त को उसी ख़्वाब में ग़लताँ कर लें आज की रात ग़नीमत है चराग़ाँ कर लें