क़त्ल तो ये नहीं ख़ुद-कुशी है आफ़्ताब अपने ख़ूँ-रेज़ जज़्बात की ज़र्ब-कारी से जान दे के ग़र्बी उफ़ुक़ के परे दफ़्न है और इक ख़ुद-कुशी देख लो मैं भी अपने तहम्मुल की ग़लत-कोशियों का हूँ मारा हुआ मुझ को अपने ही हाथों से खोदी हुई क़ब्र में दफ़्न कर दो मिरे दोस्तो