नाफ़ कटती है ज़ख़्म जलता है ख़ौफ़ धड़कन के साथ चलता है हर रग-ए-जाँ में सरसराता है साँस के साथ आता जाता है खाल को छाल से मिलाती है सनसनी रौंगटे बनाती है ताक़-ए-जाँ में चराग़ रखता है ख़ैफ़-ए-वहशत का तेल चखता है सज्दा-ए-ग़म में गिर गया ज़ाहिद सरसराती जबीं में ख़ौफ़ लिए हो गया अंग्बीन से नमकीन ज़ाइक़ा आस्तीं में ख़ौफ़ लिए साँप लश्कर के साथ चलता है मेमना मैसरा में ख़ौफ़ लिए हुस्न ग़म्ज़े के दम से क़ाएम है अपनी हर हर अदा में ख़ौफ़ लिए ज़िंदगी एक फ़र्श है जिस पर डर उठाएँ तो हौल बिछता है शाहराह-ए-हयात के ऊपर ख़ौफ़ का तारकोल बिछता है मज़हब ईजाद करता रहता है माबद आबाद करता रहता है ये तो अंदर की संग सारी है ख़ौफ़ बर्बाद करता रहता है फ़हम ओ दानिश के ज़र्द सौदागर वसवसों की कपास बेचते हैं रूह की मार्किट उन की है जो अक़ीदे हिरास बेचते हैं ज़िंदगी हम-सफ़र है लेकिन ख़ौफ़ रास्ते में उतार देता है परचा-ए-जाँ के हर शुमारे में वाहिमा इश्तिहार देता है मौत ख़ुद मारती नहीं जितना मौत का ख़ौफ़ मार देता है