और फिर एक दिन जिस्म में चीख़ती ख़्वाहिशें बे-सदा हो गईं जब दरख़्तों से लटके हुए ख़ौफ़ के साँप ज़हर नाकामियों का उगलने लगे गाँव की सूनी पगडंडी के मोड़ पर हौसलों को मिरे कुछ मिली रौशनी फिर अचानक अँधेरे की झाड़ी से निकली हुई सरसराहट ने पिघला दिए ख़्वाहिशों के सुलगते बदन