एक बच्ची हुआ करती थी बहुत अच्छी हुआ करती थी शरीर से ज़ियादा वो ख़्वाब हुआ करती थी मचली सी वो आँखें हमदम बस ख़्वाब बुना करती थी एक बच्ची हुआ करती थी बहुत अच्छी हुआ करती थी न वास्ता लोगों से था न खेलना बातों से था न बातें दुनिया-दारी की थी न मतलब की दुनिया सारी थी न क़िस्से लोगों की नफ़रत के थे न हिस्से उन की ही हसरत के थे जो टूट गए कहीं राह में जो रह गए कहीं बस आह में राहें हर दम साफ़ थी सब की ग़लतियाँ भी मुआ'फ़ थी दिल में बोझ नहीं रखती थी वो ख़्वाब से खेला करती थी शरीर से ज़्यादा वो ख़ुद ख़्वाब हुआ करती थी एक बच्ची हुआ करती थी दिल की सच्ची हुआ करती थी दोस्तों की कमी न थी पर खुद से ज़ियादा किसी से जमी न थी तब तो रब ही भगवान हुआ करते थे और भगवान से हम बातों में दुआ करते थे ज़बाँ पे शब्द बहुत सारे न हों पर भावनाओं की कमी न थी मुश्किलों को भी हँस कर जीते थे हाँ रोते बे-शक थे पर कभी हौसले पस्त हों आँखों में ऐसी नमी न थी बीते को छोड़ दिया शिकवों को भी मोड़ दिया प्यार जहाँ से मिलता था वहाँ ख़ुद को उस ने तोड़ दिया उम्मीदें उस में ख़ूब भरी थी ग़लतियाँ उस ने भी ख़ूब करी थी पर दिल साफ़ था ऊपर रब का हाथ था तो बस बातों में ही तो बस काँटों से भी दोस्ती सच्ची क्या करती थी एक बच्ची हुआ करती थी इरादों की पक्की हुआ करती थी न ज़माने का डर वो थी बे-फ़िक्र अब ज़ंजीरें उस पे लाद दी सौ चीज़ें दिमाग़ में डाल दी ज़िम्मेदारी के नाम पर आज़ादी उस की मार दी आँसू उस की कमज़ोरी थे पर कमज़ोरी से वो ज़ार थी इस लिए तो उन्ही की आड़ में सब ने जीत उस से छीन ली हर-दम उस को हार दी पर कहा न वो आम न थी खुद से वो अंजान न थी उसे मा'लूम था क्या चल रहा है कौन किस से रहा है है कौन कैसे सँभल रहा है वो खुद को उठाने में माना करती थी वक़्त आने पर वो खुद को झुकाने में माना करती थी माना जीत चाहती थी पर किसी को गिराना उस की फ़ितरत में न था चोट देना किसी को उसी हसरत में न था आख़िर रोग-हर थी वो बातों से उपचार किया करती थी लोगों को ख़्वाब दिखा कर ख़ुद उपचार हुआ करती थी एक बच्ची हुआ करती थी बड़ी अच्छी हुआ करती थी कहीं खो गया वो बचपना कहीं खो गई वो बच्ची जो अच्छी हुआ करती थी जो सच्ची हुआ करती थी अब भी दिल उस का बच्चा है पर दुनिया देख रो गया ना-उम्मीदी की इस भीड़ में वो उम्मीदों संग भी खो गया एक आह जो छूटी थी उम्मीद उस की जो लूटी थी उसे तोड़ तोड़ कर अब जोड़ जोड़ कर वो आस जोड़ने चली है रूह जान कर अपनी वो ये राज़ छोड़ने चली है ज़ंजीरों की इस दुनिया के सब वो बंधन तोड़ने चली है हर टेढ़ी राहों को वो कुछ ऐसे मोड़ ने चली है के दिख तो हो पर हताशा न हो एक जुनून हो पर बे-तहाशा न हो वो चाहती है हर चाहत में एक चाहत हो जो किसी से ग़लत न होने दे जो किसी को ग़लत न होने दे वो चाहती है हर आदत में एक आदत हो जो आदत बिगड़ने न दे जो लत को जुनून से भिड़ने न दे वो चाहती है हर आहट में एक आहट हो जो दिल को भटकने न दे जो सही को ग़लत से झटकने न दे जो उम्मीदों को राह में लटकने न दे वो चाहती है हर बड़प्पन में भी बचपन हो उम्र चाहे फिर पचपन हो वो चाहती है ना-उम्मीदी के इन भंवरो में भी उम्मीदों का सूरज निकले पत्थर की इन मूरत में भी कहीं तो छुपा मोम पिघले वो चाहती है कि एक दिन कोई झटका मिले ज़िंदगी को पता चले कि ज़िंदगी बाक़ी है वो चाहती है वो चाहती है एक सपना पाना फिर से अपने सपने जीना फिर से हर इक ख़्वाब बुनना फिर से हर इक काँटा चुनना पर इस बार वो चाहती है फिर से वो इक बच्ची बनना जिसे गाया करती थी दुनिया सुनाया करती थी वो चाहती है फिर से वो एक बच्ची बनना कि दुनिया फिर से गए ये दुनिया फिर सुनाए कि एक बच्ची हुआ करती थी बहुत अच्छी हुआ करती थी वो ख़्वाब चुनना जानती थी वो ख़्वाब बुनना जानती थी शरीर से ज़ियादा मैं ख़ुद ख़्वाब हुआ करती थी एक बच्ची हुआ करती थी