अब यहाँ मैं हूँ सिर्फ़ मैं इस बिखरे सामान दरमियान तुम तुम्हीं तो घर था घर था तो ज़िंदगी भर से रहने की उम्मीद हर सुब्ह पायल की झंकार उम्मीद हर सुब्ह तुम्हारी ख़ुशबू भरे बिस्तर में प्याली चाय पर गुज़रते वक़्तों की बातें आँखों आँखों में बातें जीतें मातें तुम बिना सूने घर में तुम्हारे पैरों की चाप के ख़्वाब ये चाप अब जहाँ गूँजती है तुम्हारे पैर जिस मकान में फर्श-ए-ज़मीन को छूते हैं वो मकान मेरा घर नहीं मेरा घर तो बस ये ख़्वाब हैं बिखरे सामान दरमियान बिखरते ख़्वाब जिन्हें टेलीफ़ोन लाइन पर सुनना सुनाना तेरी मेरी सज़ा है