मैं ने मुद्दत से कोई ख़्वाब नहीं देखा है रात खिलने का गुलाबों से महक आने का ओस की बूंदों में सूरज के समा जाने का चाँद सी मिट्टी के ज़र्रों से सदा आने का शहर से दूर किसी गाँव में रह जाने का खेत खलियानों में बाग़ों में कहीं गाने का सुबह घर छोड़ने का देर से घर आने का बहते झरनों की खनकती हुई आवाज़ों का चहचहाती हुई चिड़ियों से लदी शाख़ों का नर्गिसी आँखों में हँसती हुई नादानी का मुस्कुराते हुए चेहरे की ग़ज़ल ख़्वानी का तेरा हो जाने तिरे प्यार में खो जाने का तेरा कहलाने का तेरा ही नज़र आने का मैं ने मुद्दत से कोई ख़्वाब नहीं देखा है हाथ रख दे मिरी आँखों पे कि नींद आ जाए