ख़्वाबों के रिश्ते By Nazm << रात के साए ख़ुद-एहतसाबी >> वो ख़्वाब जो मेरी ज़िंदगी थे वो कब के रद्दी की टोकरी में पड़े हुए माँदगी के वक़्फ़े के मुंतज़िर हैं कि मैं कभी कार-ज़ार-ए-हस्ती के शोर-ओ-ग़ुल से थकूँ तो बस एक लम्हा रुक कर उन्हें उठा लूँ Share on: