सुख़न फ़रेब कोई मेहरबाँ की तरह दयार-ए-हुस्न है दुनिया की दास्ताँ की तरह ये मुस्कुराती हुई सुब्ह-ओ-शाम-ओ-शब की दुल्हन दिल-ओ-नज़र के लिए सूद-ए-बे-ज़ियाँ की तरह ये इमतिज़ाज-ए-ज़र-ए-शिर्क़-ओ-ग़र्ब का कल्चर निगाह-ए-हुस्न लिए इश्क़ आशिक़ाँ की तरह हरीर-ओ-रेशम-ओ-दीबा में रंग-ए-नाज़-ओ-अदा सुकून-ए-दिल के लिए हैं क़रार-ए-जाँ की तरह ये रंग रंग के उनवाँ लिए हसीं चेहरे सनम-कदों में तख़य्युल के हैं बुताँ की तरह सुडौल जिस्म कि सर्द-ए-रवाँ सर-ए-राहे चले हैं नाज़ से हूरान-ए-आसमाँ की तरह ये लहकी महकी फ़ज़ाएँ ये दिल-रुबा पैकर गुलों के रंग में डूबे हुए जहाँ की तरह ये रब्त-ओ-रक़्स-ओ-तरन्नुम हवा की लहरों में क़दम क़दम पे अदा-हा-ए-महविशाँ की तरह ये जगमगाती हुई रात ये दहकते कँवल नुजूम-ओ-माह-ओ-सुरय्या-ओ-कहकशाँ की तरह ये मेरे ख़्वाबों-ख़यालों की अप्सरा जिस में निगाह-ए-फ़िक्र-ओ-अमल तीर की कमाँ की तरह मगर वतन भी छुटा 'दौर' दिल की दिल में रही ये बम्बई भी न हो ख़्वाब-ए-दीगराँ की तरह