ख़्वाहिश By Nazm << शम्सा हश्र >> ये क्या पागल तमन्ना है जो सोचो में उतर गई है परों में इक अजनबी हवा भर गई है शाम के धुँदलके से कहना पड़ेगा घर लौटने की ख़्वाहिश मर गई है Share on: