नहीं आज सिगरेट नहीं आओ उस मोड़ तक हो के आएँ वहीं सामने पुल के उस पार रस्तों के जंगल से पीछे वहीं चल के इक जावेदाँ क़हक़हा तुम लगाना चलो ये भी अच्छा रहा मैं कहूँ और फिर तुम से वापस पलटने का इसरार करने लगूँ सो तुम मुस्कुराने की ज़िंदा अदाकारी करते हुए लौट आना लौट आना