वक़्त की खेती हैं हम वक़्त बोता है उगाता पालता है और बढ़ने के मवाक़े भी हमें देता है वक़्त सब्ज़ को ज़र्रीं बताने की इजाज़त मर्हमत करता है और नाचने देता है बाद-ए-शोख़ की मौजों के साथ झूमने देता है सूरज की किरन की हम-दमी में चाँदनी पी कर हमें ब-दस्त पाता है तो ख़ुश होता है वक़्त फूलने फलने की तदबीरें बताता है हमें हाँ मगर अंजाम कार काट लेना है हमें हम बिल-आख़िर उस के नग़्मे हम बिल-आख़िर उस की फ़स्ल