किसी से मशवरा करना ज़रा ख़ुद से निकल बाहर कभी ख़ाइफ़ अगर हो ज़िंदगी के पेच-ओ-ख़म से तुम पलट कर ढूँढना तस्वीर में कोई हसीं मंज़र लगे जब घट रहे हो ग़म से या शहर-ए-अदम से तुम पुरानी आदतें हों या पुराने ख़्वाब हों दिल के नहीं आसान होता है भुलाना उन को ऐ हमदम असीर-ए-ख़्वाब पर होना नहीं है ध्यान ये रखना हमारे होने से हैं ख़्वाब ये इन से नहीं हैं हम तवानाई इरादों में जिगर में हौसला रक्खो किसी भी बात पर यूँ टूट कर गिरना नहीं अच्छा कई हक़दार हैं इस ज़ीस्त के इतना समझ लो तुम कि करना बे-हिसी हक़ छीन के मरना नहीं अच्छा