पूरब वालो सूरज भेजो पूरब वालो सुख का सूरज भेजो देखो धरती बाँझ हुई है सब्ज़ सुनहरे रूप का कंगन धूप का कंगन राख हुआ है सर्द धुएँ में शीशे की दीवार के पीछे बे-कैफ़ी की मय्यत पर पहले बे-घर पत्ते नाच रहे हैं पूरब वालो देर न करना देर लगी तो रो रो कर आकाश दुल्हन की सारी आँखें रिम-झिम रिम-झिम बह जाएँगी देर न करना आने वाले रौशन कल की कुंदन घड़ियाँ सिर्फ़ तुम्हारे सिर्फ़ तुम्हारे बस में हैं पूरब वालो किरनों का संदेसा भेजो सूरज भेजो