हर दम इल्म सिखाती है अक़्ल के राज़ बताती है प्यारा नाम किताब है उस का मा'लूमात बढ़ाती है कोई बच्चा हो या बूढ़ा सब को यकसाँ भाती है दादा अब्बा मोल अगर लें पोते के काम आती है घर बैठे ही दुनिया भर की हम को सैर कराती है अगले वक़्तों के लोगों का सारा हाल सुनाती है इस की दानाई तो देखो जो पूछो समझाती है जाहिल से जाहिल को आख़िर क़ाबिल शख़्स बनाती है हर दफ़्तर के हर अफ़सर को ये परवान चढ़ाती है दिल की आँखें रौशन करके हक़ की राह दिखाती है पढ़ने वाले ख़ुश होते हैं उन का रंज मिटाती है तन्हाई में हमदम बन कर 'फ़ैज़' हमें पहुँचाती है