किताबें तुम से अच्छी हैं सिरहाने के बहुत नज़दीक जो इस तरह मेरी मुंतज़िर रहती हैं जैसे कोई लड़की ख़्वाब की दहलीज़ से अंजान शहज़ादे की राहें देखती हो किताबें तुम से अच्छी हैं कि जब मैं शाम को दिन भर मशक़्क़त कर के उन के पास आता हूँ तो ये अपनी क़बाएँ खोल कर अल्फ़ाज़ की ख़ुशबू बसाती मेरी बाँहों में समाती हैं ये मेरी आँख में ख़ुश-रंग नज़्ज़ारे समो कर मेरे होंटों पर सदा-ए-हर्फ़ रखती हैं तो यूँ महसूस होता है कि जैसे क़ाफ़ की कोई परी होंटों पे मेरे अपनी नाज़ुक उँगलियों का लम्स रखती हो किताबें तुम से अच्छी हैं मैं जिस मौज़ूअ' पर चाहूँ ये मुझ से बात करती हैं मिला कर मेरे शाने से ये शाना आगही के रास्ते पर साथ चलती हैं किताबें तुम से अच्छी हैं मिरी आँखों की बे-ख़्वाबी समझती हैं सो मुझ को लोरियाँ दे कर मिरी नींदों को ख़्वाबों से सजाती हैं मिरे सीने पे सर रख कर मुझे फ़ुर्क़त के ज़ोलीदा ख़यालों से बचाती हैं