ये जादू की कोई बस्ती है या मेरे तख़य्युल की फ़ुसूँ-कारी कि मेरे सामने इक दायरा-दर-दायरा फैली हुई ख़्वाबों की दुनिया है जहाँ हर आन रंग-ओ-नूर की बरसात होती है मिरी सोचें मिरे जज़्बे मिरा एहसास इक पैकर में ढलता है कोई आवाज़ आती है तो मेरी रूह के पाताल से लहरें उभरती हैं मैं अपने बोझ से आज़ाद हो कर अन-कहे लफ़्ज़ों के बातिन में उतरता हूँ तो ला-महदूद इम्कानात के मंज़र उभरते हैं