कोई टैगोर की कविता है लोग जब शाइरी में जीते थे तू उसी दौर की कविता है दूधिया रास्ते के कोने में अपने होने में और न होने में जाने कितने बरस सुकूँ कर के अपनी आवाज़ में जुनूँ भर के फैलती रात के किनारे पर भेड़िया माहताब से उलझे इक हक़ीक़त बड़ी समाजत से अपनी मर्ज़ी के ख़्वाब से उलझे दर्द के दिल-फ़रेब रिश्ते में जैसे गंगा चनाब से उलझे इश्क़ ने हौसला दिया वर्ना किस में हिम्मत जनाब से उलझे दिल के बंगाल की ख़लीजों में गूँजते शोर की कविता है तुझ को सिलहट में सोच कर लिक्खा तू कि लाहौर की कविता है मानता ही नहीं है दिल मेरा तू किसी और की कविता है