वो राह चलते हुए मिली थी वो जिस के चश्मे के मोटे शीशों पे ज़ात के दुख की गर्द की तह जमी हुई थी वो जिस के चेहरे वो जिस के माथे पर इक मुसलसल सफ़र का नौहा लिखा हुआ था वो जिस की आँखों में रतजगों की अज़ाब-दीदा ज़हर की ख़ुशबू रची हुई थी वो जिस की बातों में उस के अंदर का ज़र्द सन्नाटा बोलता था वो एक लड़की जो कोरा बर्तन थी जिस का फ़ातेह ही उस का मफ़्तूह वो कोरा बर्तन कि जिस को जीने का लम्स देने की अंधी ख़्वाहिश हमेशा वस्ल-ए-नफ़ी की सूरत में अपने फ़ातेह को मारती है वो एक लड़की वो एक लम्हे में राह चलते हुए मिली थी वो ज़िंदगी के तमाम बरसों तमाम सालों पे छा गई है