सब कुछ याद कर रहा हूँ मैं कोई बात भुला देने को और ये कैसी सच्चाई है आज भूलने की कोशिश में सदियों की तारीख़ें अज़बर कर बैठा हूँ मैं हैराँ हूँ मैं हूँ परेशाँ कैसे छुपाऊँ हालत अपनी हर कोशिश ला हासिल मेरी और ये कमरा ये दीवारें खूँटी से लटकी शलवारें ये बे-रौनक़ बूढ़ी रातें फ़र्श पे लिपटी बीती बातें ये सब मुझ पर बोझ बने हैं उफ़ ये कैसा ज़ुल्म है मुझ पर जब भी मैं नंगा होता हूँ मेरे तन पर चादर कोई पड़ी होती है वो भी एक घड़ी होती है जब सीने पर शहर खड़ा हो तब कुछ बे-मा'नी चीख़ों से इक मतलब की चीख़ अचानक मैं हथिया लूँ और किसी ख़ामोश जगह तन्हा गोशे में सारा मतलब छीन झपट कर फ़ौरन उस का गला दबा दूँ मैं शायद कुछ भूल रहा हूँ हाँ मैं सब कुछ भूल चुका हूँ अब तन्हा ख़ाली कमरे में हाथ में नंगा छुरा दबाए दौड़ रहा हूँ भाग रहा हूँ ये भी मुझ को याद नहीं अब सोया हूँ या जाग रहा हूँ क़त्ल के फ़ौरन बा'द मगर फिर वो सब का सब याद रहेगा जिसे भूलने की कोशिश में सदियों की तारीख़ें अज़बर कर बैठा हूँ