ज़मीं की कई गर्दिशें मेरी सोचों के पत्तों में छुप कर हसीं रेशमीं साज़िशें बुन रही हैं हसीं रेशमीं साज़िशें जिन से कल की क़बा आने वाले धुँदलकों के उजले अमामे नई साअ'तों के दुपट्टे बुनेंगे हसीं रेशमीं साज़िशें जिन से ऊँचे महल्लात की ख़्वाब-गाहों के बारीक पर्दे मुनक़्क़श ग़िलाफ़ों में लिपटे हुए नर्म तकिए बुनेंगे हसीं रेशमीं साज़िशें आदमी के लिए अपनी आँखों से छुपने की ख़्वाहिश को पूरा करेंगी नए आने वाले मआ'नी की उर्यानियाँ ढाँप लेंगी