कृष्ण-कनहैया

जो सुन लेता है गोश-ए-दिल से अफ़्साना कनहैया का
वो हो जाता है सच्चे दिल से दीवाना कनहैया का

नज़र आती है जिस को ख़्वाब में वो सूरत-ए-दिलकश
वो अपना दिल बना लेता है काशाना कनहैया का

सुरूर-ओ-कैफ़ की मिलती है उस को लज़्ज़त-ए-दाइम
लगा लेता है होंटों से जो पैमाना कनहैया का

तुम अपना हाथ फैलाओ ज़रा साक़ी की महफ़िल में
कि बाँटा जा रहा है आज पैमाना कनहैया का

किसी पर बंद होने का नहीं मय-ख़ाना-ए-उलफ़त
चले आओ खुला रहता है मय-ख़ाना कनहैया का

कनहैया की मोहब्बत में जो जाँ पर खेल जाता है
उसे सब लोग कह देते हैं दीवाना कनहैया का

'नहीफ़' अपने पराए सब इसी के दिल में रहते हैं
सब अपने हैं नहीं कोई भी बेगाना कनहैया का


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