जिन्हें इश्क़ से वास्ता कुछ नहीं उन्हें हुस्न से क्या मिला कुछ नहीं जहाँ ज़ोहद-ए-ख़ुश्क आ गया उस जगह मोहब्बत मुरव्वत वफ़ा कुछ नहीं ख़ुदा जाने किस दिल से कहते हैं लोग हसीं और उन की अदा कुछ नहीं नहीं हैं जो तनवीर-ए-दिल माह-वश शब-ए-माह में भी मज़ा कुछ नहीं शरर हैं ये हँसमुख सितारे अगर तो हर ख़ंदा-ए-ख़ुश-नुमा कुछ नहीं नज़र के हैं धोके मनाज़िर अगर तो फिर ये चमन ये फ़ज़ा कुछ नहीं हकीमों पे हैरत न हो क्यों मुझे बढ़ा इल्म तो कह दिया कुछ नहीं न साक़ी न साग़र न शाहिद न बाग़ मआल इन की तहक़ीक़ का कुछ नहीं वजूद उन का मेरी नज़र में भी क्या अदम है अदम के सिवा कुछ नहीं कहूँ कैसे हस्ती के गुलज़ार में फ़ना ही फ़ना है बक़ा कुछ नहीं मैं ख़ुश हुस्न से हूँ सिवा हुस्न के मिरी ज़ीस्त का मुद्दआ' कुछ नहीं अगर मेरी नज़रों से देखे कोई बक़ा ही बक़ा है फ़ना कुछ नहीं ये मामूरा-ए-हुस्न है तो यहाँ ख़ुशी है ख़ुशी के सिवा कुछ नहीं निगाह-ए-हक़ीक़त रस-ए-हुस्न से तअ'ल्लुक़ ग़म-ओ-रंज का कुछ नहीं मज़े अहल-ए-दिल के लिए हैं बहुत कहा मैं ने कब याँ मज़ा कुछ नहीं ये साक़ी ये साग़र ये शाहिद ये बाग़ हलावत है दिल में तो क्या कुछ नहीं