समाअतें बैन कर रही हैं कि लोग हर-चंद बोलते हैं मगर कुछ ऐसे कि जैसे उन की ज़बान ओ लब के वो सारे हिस्से जो बरमला गुफ़्तुगू की सच्ची अदाएगी के लिए बनाए गए थे मफ़्लूज हो गए हैं बसर-ख़राशी की इंतिहा है कि सारी बातें जो अन-कही हैं तमाम चेहरों की लौह-ए-महफ़ूज़ पर लिखी हैं कोई बताओ कि जब किसी की ज़बान चेहरे का साथ छोड़े तो ऐसी हालत को क्या कहें हम? कोई बताओ कि जब बहुत से अज़ाब चेहरे ज़बान बन जाएँ तो ज़बानों को क्या लिक्खें हम? जो ये ज़माना है मिस्ल-ए-फ़िरदौस इन ज़मानों को क्या लिक्खें हम? ज़माम गोयाई जब ज़बानों के हाथ में थी हुरूफ़-ए-अबजद क़रार में थे ज़बान ओ लब के हिसार में थे