मिरी तिरी निगाह में जो लाख इंतिज़ार हैं जो मेरे तेरे तन-बदन में लाख दिल-फ़िगार हैं जो मेरी तेरी उँगलियों की बे-हिसी से सब क़लम नज़ार हैं जो मेरे तेरे शहर की हर इक गली में मेरे तेरे नक़्श-ए-पा के बे-निशाँ मज़ार हैं जो मेरी तेरी रात के सितारे ज़ख़्म ज़ख़्म हैं जो मेरी तेरी सुब्ह के गुलाब चाक चाक हैं ये ज़ख़्म सारे बे-दवा ये चाक सारे बे-रफ़ू किसी पे राख चाँद की किसी पे ओस का लहू ये है भी या नहीं, बता ये है, कि महज़ जाल है मिरे तुम्हारे अंकबूत-ए-वहम का बुना हुआ जो है तो इस का क्या करें नहीं है तो भी क्या करें बता, बता, बता, बता