मिरे तसव्वुर में सब्ज़ पेड़ों की ठंडी छाँव ये मेरी ताज़ा ग़ज़ल के अशआ'र और ये नज़्में तिरे हवाले तिरे हवाले कि मैं तो ख़ुद को उदासियों को सुपुर्दगी दे चुका हूँ कहाँ का मेरा है अब इरादा न कोई मंज़िल न कोई जादा न-जाने किन रास्तों पे चल के निकल पड़ा हूँ मुसाफ़िरत के अज़ाब सहने गुरेज़-पा हैं ये मेरी हसरत के सारे रस्ते न मिल सकेंगे दोबारा इक दूसरे से शायद न अब पुकारो मुझे कि अब तो मैं जा रहा हूँ मैं जा रहा हूँ