मैं सोचता हूँ कि मेरे तन का ये निचला हिस्सा जो मासियत के मुहीब ग़ारों में गिर गया था जिसे कोई देव ऐन अहद-ए-शबाब में अपने ग़ार की तीरगी में महबूस कर गया था जिसे गुनह का घना अँधेरा ख़ुद अपने ख़ूँ में उमडती आतिश का रक़्स गर्दिश का शोर-ओ-ग़ौग़ा वो इश्क़-ए-पेचाँ की बेल जिसे गठे हुए ख़्वाब क़हवा रंगत गुदाज़ को लहू के लम्स अबरेशमी मुलाएम भरे भरे से गुलाबी होंटों का लज़्ज़तें लहर लहर बन कर उभरती झागों की अंधी खाइयों में डूब जाने की ख़्वाहिशें अक्स झालरों के हवस की बारिश के गर्म छींटे वसीले जिस्मों के क़ुर्ब के इम्बिसात तन के बहुत सताते थे अच्छे लगते थे