चटानों के अंदर बहुत सारी परतों के क़िलओं फ़सीलों की तस्ख़ीर करती मिरी आँख जब और आगे बढ़ी तो वहाँ आग के इक गरजते समुंदर से लग कर बहुत ही मुनव्वर बहुत ख़ूब-सूरत सी दुनिया खड़ी थी हज़ारों चमकते हुए रंग के अन-गिनत पत्थरों ने मिरी आँख का ख़ैर-मक़्दम किया धुएँ और कोहरे की परछाइयों से परे आतिश-ए-संग-ए-बे-ताब इक लम्स-ए-अव्वल की ख़ातिर लहू-रंग सय्याल रौशन भँवर नाचती साइक़ा टेढ़ी-मेढ़ी सी बहती हुई सीम-तन इक नदी आब-ए-ज़र में नहाते हुए सब्ज़ नीले गुलाबी सितारे मिरी आँख के मुंतज़िर थे मिरी आँख सारे नज़ारों की तहरीर पढ़ने लगी फिर न जाने हुआ क्या कहाँ खो गई वहाँ से मिरी आँख वापस नहीं आ सकी