मोहब्बत को तुम लाख फेंक आओ गहरे कुएँ में मगर एक आवाज़ पीछा करेगी कभी चाँदनी रात का गीत बन कर कभी घुप अँधेरे की पगली हँसी बन के पीछा करेगी मगर एक आवाज़ पीछा करेगी वो आवाज़ ना-ख़्वास्ता तिफ़्लक-ए-बे-पिदर एक दिन सूलियों के सहारे बनी-नौ-ए-इंसाँ की हादी बनी फिर ख़ुदा बन गई कोई माँ कई साल पहले ज़माने के डर से सर-ए-रह-गुज़र अपना लख़्त-ए-जिगर छोड़ आई वो ना-ख़्वास्ता तिफ़्लक-ए-बे-पिदर एक दिन सूलियों के सहारे बनी-नौ-ए-इंसाँ का हादी बना फिर ख़ुदा बन गया