सुनने को भीड़ है सर-ए-महशर लगी हुई तोहमत तुम्हारे इश्क़ की हम पर लगी हुई रिंदों के दम से आतिश-ए-मय के बग़ैर भी है मय-कदे में आग बराबर लगी हुई आबाद कर के शहर-ए-ख़मोशाँ हर एक सू किस खोज में है तेग़-ए-सितम-गर लगी हुई आख़िर को आज अपने लहू पर हुई तमाम बाज़ी मियान-ए-क़ातिल-ओ-ख़ंजर लगी हुई ''लाओ तो क़त्ल-नामा मिरा मैं भी देख लूँ किस किस की मोहर है सर-ए-महज़र लगी हुई''