लश्कर-कुशी By Nazm << सपना आगे जाता कैसे रौ में है रख़्श-ए-उम्र >> फ़ौज हक़ को कुचल नहीं सकती फ़ौज चाहे किसी यज़ीद की हो लाश उठती है फिर अलम बन कर लाश चाहे किसी शहीद की हो Share on: