सर्द सिलों पर ज़र्द सिलों पर ताज़ा गर्म लहू की सूरत गुलदस्तों के छींटे हैं कतबे सब बे-नाम हैं लेकिन हर इक फूल पे नाम लिखा है ग़ाफ़िल सोने वाले का याद में रोने वाले का अपने फ़र्ज़ से फ़ारिग़ हो कर अपने लहू की तान के चादर सारे बेटे ख़्वाब में हैं अपने ग़मों का हार पिरो कर अम्माँ अकेली जाग रही है