हमारे मौलवी साहब कहते हैं कि मर्द-ओ-औरत एक दूसरे के लिबास हैं लेकिन न जाने क्यों पहना सिर्फ़ मुझे ही जाता है बरता सिर्फ़ मुझे ही जाता है मुझे ही कुरेदा जाता है गंदगी की हालत में और सिर्फ़ मुझे ही निचोड़ा जाता है कई कई दफ़ा मुख़्तसर से लम्हे में हाँ सिर्फ़ मैं निचुड़ी जाती हूँ एक इम्कान-ए-ख़ुश-आइंद की ख़ातिर हाँ मैं निचुड़ती हूँ और फिर ख़ुद को सुखाती हूँ कि अगली रात फिर से मुझे पहना जाएगा और बरता जाएगा और निचोड़ा भी क्यूँकि हमारे मौलवी साहब कहते हैं मर्द और औरत एक दूसरे के लिबास हैं