सुलगते दिन हैं तवील तन्हाइयाँ मिरे साथ लेटे लेटे फ़ज़ा से आँखें लड़ा रही हैं मिरे दरीचे के पास सुनसान रहगुज़र है अभी अभी एक रेला आया था गर्द का जो लपेट कर ले गया है तिनकों को साथ अपने मिरी किताबों में कुछ नहीं है हुरूफ़ बे-रूह बद-मज़ा हैं हिकायतें अपने ख़ुश्क होंटों को चाटती हैं तमाम अशआ'र-ए-तिश्नगी के लहू में पलकें डुबो रहे हैं न रंग-ओ-नग़्मा न जाम-ओ-मीना न रक़्स-ओ-मस्ती बगूले सब को निगल रहे हैं तुम्हारी तस्वीर ढूँढता हूँ कि जिस के ठंडे घनेरे साए में बैठ कर कोई बात सोचूँ मगर मिरे पास लू के झोंके हैं गर्द है और कुछ किताबें तुम्हारी तस्वीर खो चुकी है