अब भी जब गर्दिश-ए-अय्याम से घबराता हूँ भागा भागा तिरे कमरे में चला आता हूँ सर झुका कर तिरी तस्वीर के आगे चुप-चाप पहरों बैठा हुआ बच्चे की तरह जाने क्या सोचता रहता हूँ फिर ऐसा गुमाँ होता है हाथ शफ़क़त से किसी ने मिरे सर पर रक्खा देखता हूँ तो ख़ुशी चेहरे पे छा जाती है माँ मिरे वास्ते जन्नत से चली आती है