हिन्दू भी मुझे प्यारे मुस्लिम भी मुझे प्यारे मेरे लिए दोनों हैं आँखों के मिरी तारे इस देस के बासी हैं इस ख़ाक से पैदा हैं आपस के ये झगड़े फिर क्यों इन में हुवैदा हैं है दिल से दुआ मेरी मसरूर रहें दोनों दुख-दर्द से दुनिया के ये दूर रहें दोनों कुछ शक नहीं दोनों हैं टुकड़े ये मिरे दिल के हासिल हो सुकूँ मुझ को दोनों जो रहें मिल के हिन्दू भी फले फूले मुस्लिम भी फले फूले हाँ हाँ की मगर ख़िदमत ये भूले न वो भूले मंदिर में बजें घंटे मस्जिद में अज़ानें हों इन बातों पे लड़-लड़ कर बर्बाद न जानें हों दोनों को यहीं मरना दोनों को यहीं जीना क्यों बैर रहे इन में क्यों इन में रहे कीना प्रणाम भी जारी हो तस्लीम रहे क़ाएम क़ुरआन की वेदों की ता'लीम रहे क़ाएम हिन्दी का भी चर्चा हो उर्दू भी फले-फूले झूले में तरक़्क़ी के हर एक ज़बाँ झूले नाशाद न हो कोई हाँ शाद रहें दोनों आज़ाद रहें दोनों आज़ाद रहें दोनों