जंगी बेवा का ना-मुकम्मल गीत क़रीबी दरिया में कुछ सिपाहियों के साथ डूब गया घोड़े लाशों के ज़ख़्मों में दौड़ते दौड़ते गुम हो गए सिपाही तलवार की धार से लुढ़कते हुए मैदान-ए-जंग के वस्त में फ़त्ह का लफ़्ज़ ज़मीन पर लिखने लगे मैदान-ए-जंग घूमता हुआ लश्कर के पैरों के नीचे से सरक कर हवा के साथ मिल कर मुल्क की हुदूद को वसीअ' करने लग गया सिपह-सालार का गूँजता हुआ रजज़ बहुत से सिपाहियों के जनाज़े में तब्दील हो गया सिपाहियों की लाशें तलवार के दस्ते पर लगे पसीने से पहले ख़ुश्क हो कर मैदान-ए-जंग की नुमायाँ क़ब्रें बन गईं आदमी जानता है कि तलवार की धार से गर्दनें तो काटी जा सकती हैं मगर वो रजज़ क़त्ल नहीं किए जा सकते जिन्हें याद करने के लिए सिपाहियों ने माओं के पिस्तानों से दूध से ज़ियादा ज़बान की तेज़ी को हासिल किया ज़ियादा ज़बान की तेज़ी को हासिल किया