मैं अजब आदमी हूँ राएगानी के तसलसुल ने मुझे तोड़ दिया मेरी पूँजी मिरे क़िर्तास ओ क़लम कुछ किताबें पए-तस्कीन-ए-जुनूँ कौन तालिब है भला माया-ए-बे-माया का कोई जागीर नहीं ज़िंदगी शेर के मेले में गँवा दी मैं ने इस पे नाज़ाँ था कि हर लफ़्ज़ मिरे हल्क़ा-ए-एहसास में है इस पे फ़ाख़िर था कि हैं ख़्वाब मिरे कीसे में मैं ने क्या क्या न फ़न-ए-शेर की आराइश की लफ़्ज़-दर-लफ़्ज़ महल हर्फ़-दर-हर्फ़ ख़याल सत्र-दर-सत्र जुनूँ मैं अजब आदमी हूँ ज़िंदगी शेर के मेले में गँवा दी मैं ने