मैं अपने लहजे में बोलता हूँ By Nazm << ख़ुद-साख़्ता दुख सत्तर माओं का प्यार >> मैं अपने हाथों से सोचता हूँ और अपने पोरों से उँगलियों के न खुलने वाली गिरहों को ज़ेहनों की खोलता हूँ बरसने वाली सुख़न की बारिश से सच्चे लफ़्ज़ों के मोतियों को मैं रोलता हूँ मैं अपने लहजे में बोलता हूँ Share on: