मैं बहरा हूँ जनाब By Nazm << मक़ूले पर अमल एक साहब और नुजूमी >> शायरी को हम समझते हैं जो रूहानी ग़िज़ा बाज़ लोगों के लिए हो जाती है अक्सर अज़ाब ट्रेन में मैं ने किसी से ये कहा शाइ'र हूँ मैं सुन के वो मुँह फेर कर बोला मैं बहरा हूँ जनाब Share on: