मैं क्या हूँ मैं क्या हूँ ये बतलाओ तुम फिर घी और शक्कर खाओ तुम बाग़ों में मेरा डेरा है जंगल में मेरा बसेरा है इक ताज मिरे सर पर है धरा ऊदा ऊदा नीला नीला हैं लम्बे लम्बे पर मेरे जो सारे बदन को हैं घेरे नक़्श उन के झमकते रहते हैं तारे से चमकते रहते हैं जब बादल घिर कर आते हैं जब बादल बारिश लाते हैं उस वक़्त मिरी झंकार सुनो इक बार नहीं सौ बार सुनो मैं जोश में जिस दम आता हूँ पर अपने सब फैलाता हूँ फिर नाचता हूँ मैं जी भर के ठुमक ठुमक ठुमक कर के तारीफ़ मिरी सब करते हैं सब मेरे हुस्न पे मरते हैं हैं लेकिन पाँव मिरे भद्दे बस हैं यही मुझ को दुख देते मैं क्या हूँ ये बतलाओ तुम फिर घी और शक्कर खाओ तुम