मैं ने दजला-ओ-फ़ुरात के मशरिक़ में एक क़दीम और रौशन पेड़ के नीचे सज्दों का ख़िराज वसूल किया और फलदार दरख़्तों से ढके बाग़ में मुक़ीम हवा जिसे मेरे और उस औरत के लिए आरास्ता किया गया था जिस की जन्म-भूमि मेरी दाईं पस्ली थी मैं ने पहली बार उसे ज़िंदगी के पेड़ की सुनहरी शाख़ों के दरमियान रेंगते देखा वो पेड़ की हिफ़ाज़त पे मामूर था उस की कासनी आँखों में क़ाइल कर लेने वाली चमक थी मैं ने अपनी भूक इम्तिनाअ के फल पे तस्तीर की तो मेरी आँखें उस औरत के जिस्म के आर-पार देखने लगीं और बाग़ के सब्ज़ पेड़ मेरे सर से अपने साए की छतरियाँ समेटने लगे मैं ने ज़िंदगी के पेड़ से लिपटे अज़दहे को तीन बराबर हिस्सों में तक़्सीम किया एक हिस्से से अपने सर के लिए शिमला ईजाद किया दूसरे हिस्से को इज़ार-बंद बना कर कमर के गिर्द लपेटा जो बच रहा उसे अपनी साथी औरत के बालों में गूँधा और बाग़ की जानिब पीठ कर ली मेरी औरत ने मुझ से छुप कर उस की सियाह जल्द से अपनी नीली आँखों के लिए सुर्मा ईजाद किया और रात के पिछले पहर अपने दूध से उस की ज़ियाफ़त करने लगी मैं ने मुक़द्दस पहाड़ की सब से बुलंद चोटी उसे दान की और अपनी पेशानी ख़ाक पे रख दी