मैं शिकार हूँ किसी और का मुझे मारता कोई और है मुझे जिस ने बकरी बना दिया वो तो भेड़िया कोई और है कई सर्दियाँ भी गुज़र गईं मैं तो उस के काम न आ सका मैं लिहाफ़ हूँ किसी और का मुझे ओढ़ता कोई और है मुझे चक्करों में फँसा दिया मुझे इश्क़ ने तो रुला दिया मैं तो माँग थी किसी और की मुझे माँगता कोई और है मैं टंगा रहा था मुंडेर पर कि कभी तो आएगा सेहन में मैं था मुंतज़िर किसी और का मुझे घूरता कोई और है सर-ए-बज़्म मुझ को उठा दिया मुझे मार मार लिटा दिया मुझे मारता कोई और है वले हाँफ्ता कोई और है मुझे अपनी बीवी पे फ़ख़्र है मुझे अपने साले पे नाज़ है नहीं दोश दोनों का इस में कुछ मुझे डाँटता कोई और है मैं तो फेंट फेंट के फट गया मैं फटा हुआ वही ताश हूँ मुझे खेलता कोई और है मुझे फेंटता कोई और है मिरे रोब में तो वो आ गया मिरे सामने तो वो झुक गया मुझे लात खा के हुई ख़बर मुझे पीटता कोई और है है अजब निज़ाम ज़कात का मिरे मुल्क में मिरे देस में इसे काटता कोई और है इसे बाँटता कोई और है जो गरजते हों वो बरसते हों कभी ऐसा हम ने सुना नहीं यहाँ भूँकता कोई और है यहाँ काटता कोई और है अजब आदमी है ये 'क़ासमी' इसे बे-क़ुसूर ही जानिए ये तो डाकिया है जनाब-ए-मन इसे भेजता कोई और है