मैं सोचता हूँ अगर दो रास्ते होते तुम तक जाने के लिए किसी बाग़ में चहल-क़दमी की तरह यख़-बस्ता पहाड़ों में सफ़ेद सुरंगों जैसे अगर दो ख़्वाब होते सहमी हुई ख़ामोश रातों में जागने के लिए सोने के लिए अगर दो जंगल होते पुर-असरार भटकने के लिए या दुनिया-दारों से कटने के लिए अगर दो परिंदे होते मोहब्बत के लिए अगर दो सराब होते प्यासा जीने के लिए प्यासा मरने के लिए अगर दो कहानियाँ होतीं क़दीम चट्टान पर कंदा ना-क़ाबिल-ए-फ़हम नुक़ूश में मदफ़ून याद करने के लिए भूल जाने के लिए अगर दो गीत होते मेरे जीते जी आख़िरी हिचकी लेने के लिए या मेरे बा'द कुछ पल मुझे रोने के लिए अगर दो सितारे होते सुब्ह-ए-काज़िब की दहलीज़ पर चमकने के लिए बुझने के लिए उम्र गुज़ार कर मैं सोचता हूँ ये मुमकिन नहीं इस दुनिया की बे-इंतिहाई में दो चीज़ें नहीं होतीं सिवाए दो तन्हाइयों के तू और मैं