फ़िराक़ सुब्हों की बुझती किरनें विसाल शामों की जलती शमएँ ज़वाल ज़रदाब ख़ाल-ओ-ख़द से अटे ज़माने ये हाँफती धूप काँपती चाँदनी से चेहरे हैं मेरे एहसास का असासा बहार के बे-कनार मौसम में खिलने वाले तमाम फूलों से फूटते रंग वहशतों में घिरे लबों के खुले दरीचों से बहने वाले हुरूफ़ मेरी निशानियाँ हैं