वो इक मज़दूर लड़की है बहुत आसान है मेरे लिए उस को मना लेना ज़रा आरास्ता हो लूँ मिरा आईना कहता है किसी सब से बड़े बुत-साज़ का शहकार हूँ गोया मैं शहरों के तबस्सुम-पाश नज़्ज़ारों का पाला हूँ मैं पर्वर्दा हूँ बारों क़हवा-ख़ानों की फ़ज़ाओं का मैं जब शहरों की रंगीं तितलियों को छेड़ लेता हूँ मैं जब आरास्ता ख़ल्वत-कदों की मेज़ पर जा कर शराबों से भी ख़ुश-रंग फूलों को अपना ही लेता हूँ तो फिर इक गाँव की पाली हुई मासूम सी लड़की मिरे बस में न आएगी भला ये कैसे मुमकिन है? और फिर ऐसे में जब मैं चाहता हूँ प्यार करता हूँ ज़रा बैठो मैं दरिया के किनारे धान के खेतों में हो आऊँ यही मौसम है जब धरती से हम रोटी उगाते हैं तुम्हें तकलीफ़ तो होगी हमारे झोंपड़ों में चारपाई भी नहीं होती नहीं मैं रुक गई तो धान तक पानी न आएगा हमारे गाँव में बरसात ही तो एक मौसम है कि जब हम साल भर के वास्ते कुछ काम करते हैं इधर बैठो पराई लड़कियों को इस तरह देखा नहीं करते ये लिपस्टिक ये पाउडर और ये स्कार्फ़ क्या होगा मुझे खेतों में मज़दूरी से फ़ुर्सत ही नहीं मिलती मिरे होंटों पे घंटों बूँद पानी की नहीं पड़ती मिरे चेहरे मिरे बाज़ू पे लू और धूप रहती है गले में सिर्फ़ पीतल का ये चंदन हार काफ़ी है हवा में दिलकशी है और फ़ज़ा सोना लुटाती है मुझे उन से अक़ीदत है यही मेरी मताअ' मेरी नेमत है बहुत मम्नून हूँ लेकिन हुज़ूर आप अपने तोहफ़े शहर की परियों में ले जाएँ