मजबूरी By Nazm << मैं इंसान हूँ यक़ीन >> चलो अच्छा हुआ तुम ने मिरा ख़त नज़्र-ए-आतिश कर दिया और मिरी तस्वीर वापस भेज दी मुझ को इसे भी ख़ाक कर देतीं तो क़िस्सा पाक हो जाता अब इस तस्वीर को मैं भेज दूँगा उस रिसाले में जो माहाना तुम्हारे घर में आता है Share on: