क्या मिरे हुस्न-ए-दिल-आवेज़ पे तू मरता है शोला-रूई पे मिरी जान फ़िदा करता है ये अगर सच है तो जा मुझ से मोहब्बत मत कर निगह-ए-इश्क़ रुख़-ए-महर-ए-जहाँ-ताब पे डाल हुस्न-ए-बे-मिस्ल को जिस के न अजल है न ज़वाल कम-सिनी पर मिरी माइल है तबीअ'त तेरी हुस्न-ए-नौ-ख़ेज़ से वाबस्ता है उल्फ़त तेरी ये अगर सच है तो जा मुझ से मोहब्बत मत कर तेरी उल्फ़त के है क़ाबिल रुख़-ए-ज़ेबा-ए-बहार जिस के अनमोल जवाहर का नहीं कोई शुमार चाहता है मुझे तू क्या मिरी हशमत के लिए दिल है बेकल तिरा मेरे ज़र-ओ-दौलत के लिए ये अगर सच है तो जा मुझ से मोहब्बत मत कर चाहिए तुझ को करे बहर-ए-गुहर-ख़ेज़ से प्यार जिस के अनमोल जवाहर का नहीं कोई शुमार प्यार मुझ से है तुझे क्या मिरी उल्फ़त के लिए दिल है परवाना तिरा शम-ए-मोहब्बत के लिए ये अगर सच है तो कर मुझ से मोहब्बत प्यारे बेहतर अज़ मेहर-ओ-बहार-ए-दिल-ए-शैदा मेरा बहर में भी नहीं ऐसा गुहर-ए-मेहर-ओ-वफ़ा